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Kalyani Das

Inspirational

4  

Kalyani Das

Inspirational

स्त्री हूं

स्त्री हूं

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गर्वित हूं, क्यूंकि मैं स्त्री हूं।

गर समझ में आऊं,

तब भी खुश।

न समझी जाऊं

तब भी गर्वित खुद पर।


जन्मदात्री हूं,

तभी तो, लहू को अपने बना कर अमृत,

जीवन पोषित करती हूं।


स्त्री हूं...

व्यथित होती....

कभी अपनों के द्वारा,

कभी औरों के द्वारा।

व्यथा को अपने आंसूओं में बहा कर,

फिर ख़ुशियों के रंग बिखेरती हूं।


स्त्री हूं.....

ख़ुद पलती दर्द में,

पर बनकर बदरी सुख की,

सब पर रिमझिम बरसती हूं।


स्त्री हूं......

ख़ुशियाँ ढूंढती अपनों की ख़ुशियों में,

तड़पती हूं औरों के दुःख में भी,

निश्छल सेवा भाव लुटाती,

तो कभी ममत्व से भर जाती।


स्त्री हूं...

कभी प्रेम में अपना सर्वस्व लुटाती,

कभी अपमानों के दंश,

आंचल में गांठ लगाकर,

विस्मृत कर जाती हूं।


स्त्री हूं........

गर कभी क्रोधित हो भी जाऊँ,

ख़ुद में ही, बुदबुदाकर

क्रोधाग्नि में खुद ही जलती,

पर, औरों को शीतल कर जाती हूं।

क्योंकि मैं स्त्री हूं......

तभी तो मैं गर्वित हूं, स्वंय पर।



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