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Kalyani Das

Romance

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Kalyani Das

Romance

हृदय रूपी आसमां

हृदय रूपी आसमां

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आकाश सा विस्तृत

तुम्हारा विशाल हृदय

जहां मिला है मुझे

अपना विस्तृत 

आसमां।


दैनिक क्रियाकलापोंं से  

थककर चूर तन,

कर्त्तव्य सेे लेकर 

अधिकारों तक 

हिचकोले खाता मन।


पर अडिग अपने 

कर्त्तव्य पथ पर,

हर सुख-दुःख से परे,

जब चाहत होती है एक 

विश्रांंति की

तब रात की नीरवता को चीर

उड़ती हूूं तुम्हारे हृदय रूपी गगन मेें।


होकर उन्मुक्त

कभी रोती कभी गाती

बिना किसी चाह के

बस मन पाखी अपने पंंख फैलाए,

एक उड़ान भरता रहता हैै,

अपने आसमान में।


तुम्हें तो पता ही नहीं

तुम होते हो गहन निद्रा में,

बताऊंगी एक दिन तुम्हें

मन कितना खुश होता है ,

पाकर अपना आकश

खुशी के हर रंग उकेरती हूं यहाँ,

मेरे शब्दों को भी पंंख मिलते हैं यहाँ।


और उभरता है मेरे आकाश में,

इक प्यारा सा इंद्रधनुष।

सोचती हूं जीने के लिए कितनों को 

मिलता है अपना नीला सा आकाश ?

पर मुझे दिया है तुमने, 

धवल बादलों से भरा, 

मेरा अपना नीला आसमान।


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