प्रेम ग़ज़ल
प्रेम ग़ज़ल
मेरी अदाओं का ऐसा फसाना हो गया,
कि वो मेरे जुल्फों का दीवाना हो गया।
मेरी आंखों में थी झील सी गहराई,
मेरी बेसुरी आवाज़ भी तराना हो गया।
उसने कहा क्या खूब लिखती हो जान,
उस पर लिखा व्यंग्य भी हंसाना हो गया।
कहां खो गई हो तुम,खुद पर भी ध्यान दो,
लगता है तुम्हें खुद से मिले भी जमाना हो गया।
तुम्हारा जुनून भी कमाल का है साहित्य में,
अब तो मुझे तुम्हारी ग़ज़ल से याराना हो गया।
जो खुश रहते थे हमेंशा सिर्फ अपने आप में,
"सरगम" से उन्हें भी दोस्ताना हो गया।

