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Shubham Arpit

Romance

4  

Shubham Arpit

Romance

अंतहीन अंतमात्र

अंतहीन अंतमात्र

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कितने ही किस्सों में मैं लिख देना चाहता हूँ तुम्हे हसीन

कि स्याही कागज़ भी ख़त्म हो जाए संसार के, पर तुम्हारे

हर नग्में गुनगुनाते रहे हर अंतहीन अंतर्मन


सुनते हुए तुम्हारे हर कही बातों को पिछले छूटे दिनों में हर वक़्त.

मैं लिखता रहा जैसे कोई उपन्यास के अंतहीन भाग जो कहती रही

कई बातें तुम्हारे अंतर्मन की


खो जाना चाहता हूँ फिर वैसे ही सावन के झरोखों के बीच

जैसे मैं फिर से होना चाहता हूँ तुम जैसा कुछ कुछ, कि तुमने

बना दी हो फिर से मुझे मुझ जैसा अंतहीन..


हर एक एक पल सदियों की तरह बहने लगे है सीने से

हमारे इस प्रेम त्रासदी में

कि जैसे लगने लगा है गुज़रती सदियाँ सारे प्रेम त्रादियों की

रोमियो-जूलिएट से होकर लैला-मजनू तक और भी अंतहीन


कोशिशें हज़ार करता हूँ तुम्हें वो सारे गीत सुनाने की जो

लिखी तुम्हारे ही काजर से है..

जानता हूँ तुम सुनोगी नही एक भी अलफ़ाज़ उनके अभी,

कि तुम समझ चुकी हो प्रेम की ख़ामोशी को पर मानता

नहीं ये अंतहीन अंतर्मन


खोल बैठा हूँ सारे पर्दो को कुछ इस तरह अब कि,

कभी किसी नन्ही चिड़िया सी तुम आ बैठोगी मेरी

खिड़की के सामने और फिर देखोगी इस घर को भी

कितना गेहरा हो गया है अंधकार इस अंतहीन अंतर्मन जैसा यहाँ भी


सन्नाटा जो कुछ कहता है तुम्हारे मेरे बीच का अब कहीं दुबक कर

वो किसी कालजयी प्रेम गीत से कम नहीं कि उनके हर सुर की बुनावट

तो होती गयी है धीमे धीमे इसी अंतहीन अंतर्मन में कब से


मेरे अंतहीन अंतर्मन की तिजोरी अब शून्य से भर गयी है

कि खज़ाना उसका तो किसी महानगर के हवाओं में खो

चुकी है इस कोशिश में कि हम फिर उड़ सके एक साथ

खुले आसमान के नीचे


कितने ही कष्ट को सहती तुम चली जा रही हो बेख़ौफ़ बेपरवाह

तुम्हें इल्म नहीं मगर मुझे कचोटता है वो तिल तिल कि अब नहीं

बचा है एक भी आह इस अंतहीन अंतर्मन में


मगर कहती थी तुम जैसे होना होगा हमें यूँ ख़ुद के लिए ही

तो देखो मैं भी हो गया हूँ कैसा अंतहीन तुम्हारे प्रेम के लिए की

अब अर्पित को भी भा रहा है हर ज़ख्म इस अंतहीन अंतर्मन का


कि प्रेम ही अब होगा हसीन से हर बार उसी तरह जैसे

प्रेम होता रहा है सदियों से कई रूहों को अपने ही कितने

अंदर बसे किसी अंतहीन अंतर्मन के अन्धकार से अंतहीन


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