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अर्जुन इलाहाबादी

Romance

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अर्जुन इलाहाबादी

Romance

तुम कहो तो

तुम कहो तो

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तुम कहो तो तुम्हारे लिए लड़ जाऊँ सारे जमाने से।

मगर तुम मुकर तो न जाओगे मुझे अपना बनाने से।


ऐसा नहीं कि यकीं नहीं है मुझे तुम पर मेहरबाँ ।

पर क्या करूँ डरता हूँ बहुत इल्ज़ाम लग जाने से।


इतिहास गवाह है कि जमाना बहुत जालिम है दोस्त।

कहाँ बाज आता है ये दूसरों के घर आग लगाने से।


बड़ी शिद्दत से जिसे आरज़ू थी पाने की वो तुम हो।

तुम हाथ थाम लो मुझे परवाह नहीं सूली चढ़ जाने से।


इश्क़ बे हिसाब जिस पर भी कभी आएगा "अर्जुन"।

इतिहास में लिखा जाएगा मिटेगा न कभी मिटाने से।



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