शब्दों में मेरे
शब्दों में मेरे
मेरे शब्दों में तुम्हारी ही शक्ल झलकती है
तुम्हारे सानिध्य की ललक हमेशा रहती है
रुठ जाते हो जब तब भी
तुम्हारे ख्वाहिश की फ़िक्र लगी रहती है
चाहा है दिल तुझे कुछ ऐसे कि
तेरी चाहतों की कतारें ख़त्म हों
कोशिश हर पल करती रहती हूँ
तुम्हारी यादों से घर अपना भर लूँ
और यादों से अपनी तुझे भर दूँ
यही वो खज़ाना है जो
धन दौलत पर पड़ता भारी है
सब कुछ पल पल बदलती जाती है
रह जाता बस यादों का खज़ाना है
इन ख़ज़ानों का पिटारा जब खुलता है
दिल यादों में गोतें लगा झूम उठता है!

