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gyayak jain

Tragedy

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gyayak jain

Tragedy

स्वागत कर जो घड़ी पड़ी है

स्वागत कर जो घड़ी पड़ी है

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क्या करूँ मैं बात लोक की,

नाते-रिश्ते सब मतलब के

क्या करूँ मैं निंदा पर की,

अपने ही जब वक्त बदलते।


व्यवहारों के पाखंड खड़े हैं,

दुनिया अचरज अभिमान धनी है

क्या खूब कमा ली दौलत तूने

स्वागत कर जो घड़ी पड़ी है।


क्यूँ पड़ता फर्क निंदा का,

करने वाले क्या अपने हैं

मात-पिता चरण रज छूकर,

निकल जा समय की बहुत कमी है।


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