गुनाह
गुनाह
गुनाह ! किया था उसने,
उदासीन हो गई सरकार से
जो आश छोड़ दी।
कदमों में टूटी चप्पल,
बदन पे पसीने से लतपत कपड़े,
और सीने में बेतहाशा हिम्मत लिए,
वो चल पड़ा।
ना रास्तों की खबर थी,
ना पेट में निबाले की भूख,
बस आश थी एक,
और कदमों का साथ,
तो चलता रहा, चलता रहा।
रेल की पटरियों के सहारे,
रास्ता तय कर रहा था,
बहीं रात को सो गया,
सोचा अभी रेल बंद पड़ीं होंगी।
फिर कुछ tweet हुए,
कुछ बहसें हुईं, कुछ विरोध हुये
दुख कम हो सके सो,
कुछ मुआवजे दिए गये।
और फिर कारवाँ चल पड़ा,
किसी दूसरे हादसे की तलाश में,
बिना संवेदना के मुआवजा बाँटने।