उन्हें प्रणाम !
उन्हें प्रणाम !
हाथ पकड़कर जिन्होंने हमें पन्नों पर लिखना सिखलाया
निस्वार्थ भाव से जिन्होंने हमें जीने का मकसद बतलाया
दिशाहीन ही थे हम तो कर्तव्य पथ पे चलना सिखलाया
स्वयं तपकर तप से अपने जीवन को प्रकाशित करवाया
हमारी प्रत्येक कमी को दूर कर हृदय से अपने गले लगाया
सत्य - असत्य, सही गलत का संपूर्ण भेद हमें समझाया
गिर-गिर कर संभलना कैसे महत्व परिश्रम का बतलाया
हमारे सपनों को जिन्होंने लक्ष्य अपने जीवन का बनाया
हमें ऊँचाइयों के शीर्ष तकसमाज में जिसने पहुँचाया
मातृभूमि सम प्रेम न दूजा देश पर मर मिटना बतलाया
बन प्रेम सरिता की जलधारा नैया को हमारी पार कराया
रहस्य संघर्षरत जीवन का सहनता, सुगमता से समझाया
अपने उन समस्त गुरुजनों का मैं सम्मान करती हूँ
श्रद्धा भाव से आज उनको कोटि-कोटि प्रणाम करती हूँ।