STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Abstract

4  

Bhavna Thaker

Abstract

फटी जेब

फटी जेब

1 min
289

ऊँची पदवी पर बैठा 

न कर गुरुर अपनी फ़तेह पर इतना 

जग जाने तेरी मगरुरी 

तकदीर सँवारने लगते है चंद सिक्के 

सपने बिकते है यहाँ, 


ढूँढते हक अपना हकीकत पड़ी रहती है 

है जो समर्थ पड़ा रहेगा परे 

बंदा कोई आके खरीद कर चला जाता है  

तेरी जगह जो सिक्के न कर पाते काम 


आरक्षण बैठ जाएगा वहीं 

तू करता रहे कितनी भी मजदूरी 

कर जुगाड़ कोई नोटों का 

है जेब में चंद सिक्के 


तो खरीद पायेगा लकीरों से किस्मत की गठरी

या तो जी सकते है अमीर यहाँ शान से 

या गरीब जिसे न किसीकी पड़ी 


मस्त अपने आप में फूटपाथ पे कटे या झोंपड़ी 

हालत तेरी ख़राब है तू है बीच में लटका

सरकारी नौकर बनना मानों 

फटी जेब वालों का काम अटका।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract