मानस मोती
मानस मोती
यह है मानस के दो मोती,
जो छोड़ जाए उसकी किस्मत रोती।
इन मानस के मोती का श्रृंगार सृर्जन कर डालूं तो-
यह हर लेती हर दुख को,
कवि कह देता प्रिय सुख को।
इन मानस के मोती को
संग्राम समर मे कह डालूं तो
यह शत्रुओं को ललकारती है,
वीरों का मान बढ़ाती है।
इन मानस के मोती को
प्रिय वियोग मे रच डालूं तो
यह हर मन को रुलाती है,
प्रेमी की याद दिलाती है।
इन मानस के मोती को
हास्य सभा कह डालूं तो-
यह सबको हर्षित कर देती है,
हर गम को हर लेती है।
इन मानस के मोती को
गद्य- पद्य में रच डालूं तो-
यह काव्य बन निकलती
कवि की जुबानी से,
लेखनी से निकलकर
बन जाती अमर कहानी ये।
