वीरांगना -"तीलू रौतेली "
वीरांगना -"तीलू रौतेली "
तीलू थी एक फूल सी गुड़िया ,
बन गई वह शत्रुओं के लिए मौत की पुड़िया।
जल गई उसके मन में ज्वाला की फुलझड़ियाँ,
उठा ली तलवार- कटार और लगा दी शत्रु
शीश की लड़ियाँ।।
जब उसने शत्रु को देखा तो उसका
खून खौल उठा,
मन का स्वाभिमान तब उसका डोल उठा।
रण में लड़ेगी तीलू रानी है जग बोल उठा,
रणबांकुरी -रण में कूद पड़ी शत्रु शीश की लगा
दी लड़ी।
हर शब्द को निशब्द कर दे ऐसी लड़ी थी,
लगता है जैसे शत्रु रक्त की प्यास बड़ी थी।
तीलू साक्षात बन गई महाकाली थी,
लड़ती ऐसे जैसे रणचंडी भवानी थी ।।
गढ़ सपूत गढ़ देश की इकलौती रानी थी,
मातृभूमि की रक्षा को निशदिन शीश
झुकाती थी।
वह अलबेली सी मस्तानी सी लगती झांसी
वाली रानी थी,
किया प्रहार दुष्टों ने पीछे से यह कुनीति
पुरानी थी,
फिर भी उस बाला ने अंतिम सांस तक
शत्रुओं से ठानी थी ,
वह कोई और नहीं अपने गढ़ देश की माँ
भवानी थी ,
वह कोई और नहीं अपनी गढ़ देश की
माँ भवानी थी।।
यह कविता एक बाला के लिए जो अमर
है "तीलू रौतेली "
तीलू रौतेली (जन्म तिलोत्तमा देवी), गढ़वाल, उत्तराखण्ड
की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि
में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन
राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 15 से 20 वर्ष की आयु में
सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक
मात्र वीरांगना है।