सच और झूठ
सच और झूठ
सतयुग से कलयुग तक,
सच का रहा है बोलबाला।
सच ने अपनी ताकत से,
झूठ को जिंदा जला डाला।
फिर भी झूठ न जाने क्यों !
फ़न फैला के उठता है।
सच्चाई को डसने की,
फिर से कोशिश करता है।
सच की राह बड़ी दुर्गम है।
झूठ सुगम रस्ता दिखलाता।
अंत में झूठ ज़हर उगाले,
लेकिन सच अमृत बरसाता।
मानो या न मानो तुम।
पर ये सच पहचानो तुम।
सच्चाई के ग्रन्थ भरे है।
झूठ का पन्ना रीता है।
हुई हमेशा हार झूठ की,
सच हरदम ही जीता है
आज भी सच ही जीता है।