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अच्युतं केशवं

Abstract

5.0  

अच्युतं केशवं

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देवी या दानवी,मानव कभी नहीं

देवी या दानवी,मानव कभी नहीं

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ऐ!स्त्री तू

धर्म की धुरी

संस्कृति की नींव

सभ्यता की आदर्श

कर्तव्यशीलता की अनुपमेय उपमा

घर की शोभा

पर

स्त्री तू नहीं है मानव

तुझे मानव नहीं माना जा सकता

हम

हमारा समाज

तुझे दे रहा है

देवी की पदवी

देवता उत्तम है मानव से

तू देवी बनना क्यों नहीं चाहती ?

क्यों चाहती है ये

मानव अधिकार

क्या होता है धन पैसा

क्या होता है उत्तराधिकार

ये सब मन का धन है

मोह माया है

हाथ का मैल है

ये मैल लगा रहने ने पुरुषों के हाथों में

क्यों धन के मैल से गंदे करना चाहती है हाथ

बस बच्चे संभाल

घर संभाल

और

जरा अपने कपड़े संभाल

सुन

तुझे बनाया गया है

आदमी की पसली से

आदमी के लिए

अगर आदमी को शक है तेरी

वफादारी पर

विश्वसनीयता पर

तो

अग्नि परीक्षा दे

प्रमाणित कर अपनी वफादारी

त्रेता हो या कलयुग

तू नही थोप सकती पुरुष पर

वफादारी या बराबरी की शर्त

क्योंकि

पुरुष मनुष्य है इन्सान है

और

तू देवी है

देवी है तो मांग मत

सिर्फ देती रह

यही तेरा कर्तव्य है

तू दे अग्नि परीक्षा भी

और

भोग वनवास भी

अन्यथा

तू देवी से मानवी तो नहीं बनेगी

घोषित कर दी जायेगी

कुलटा दानव राक्षसी

अत:

मानव के रूप में अपनी स्वीकार्यता का हठ छोड़

तय कर ले

देवी बनेगी या दानवी



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