STORYMIRROR

Anshu Shri Saxena

Abstract

4  

Anshu Shri Saxena

Abstract

बुढ़ापा

बुढ़ापा

1 min
453

कभी जिनके क़दमों में थीं

दुनिया की सारी दौलतें

आज उन्हीं क़दमों को

शिथिल हो लड़खड़ाते देखा है !


कभी जिनके चेहरे पर थीं,

रौब से शानदार मुस्कुराहटें

आज उन्हीं चेहरो को झुर्रियों 

की कालिमा से मुरझाते देखा है !


कभी जब उनकी उँगलियाँ थाम,

उनके बच्चे सीखते थे चलना

आज उन्हीं काँपती उँगलियों को, 

बच्चों का सहारा ढूँढते देखा है !


कभी जिन्होंने तिनका तिनका जोड़, 

बसाया था इक छोटा सा आशियाना

आज उसी आशियाने में ख़ुद के लिये 

एक महफ़ूज़ कोना तलाशते देखा है !!


सारी उम्र जो जीतोड़ मेहनत कर 

पालते रहे पूरे कुनबे का पेट

आज अपना पेट भी पालने को,

कोल्हू का बैल बनते देखा है !


शायद कभी ख़त्म होंगी ये मुश्किलें भी

शायद कभी मिलेगा दो पल का चैन भी

उन बूढ़ी पथराई सी आँखों में,

इक नन्हा सा सपना पलते देखा है !


उम्र तो सबकी गुज़र जानी है एक दिन

जवानी भी बुढ़ापे में ढल जानी है एक दिन

प्यार और सम्मान का हक़ है बुज़ुर्गों को, 

फिर उन्हें बरगद की शीतल छाँव बनते देखा है !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract