माॅ : ममता कि मुरत
माॅ : ममता कि मुरत
माॅ शब्द है एक अनोखा ,
जिसने जीवन के हर पन्ने में
ममता को है पिरोया।
पेट के भुख से लेकर,
मन कि व्यथा जो
आॅखो से ही पढ ले।
एक स्पश॔ से ही,
जीवन में खुशियाँ वो भर दे।
उसकी डांट में भी प्यार छुपा,
प्यार में भी बसी है सीख।
जीवन के हर पथ पर,
किया मार्ग दर्शन उसने हमारा।
निकृष्टता से लेकर श्रेष्ठता
तक का यह सफर उसकी
उॅगली के सहारे ही तो है बिताया।
पर देखो उसकी यह विडम्बना,
हमने ही उसे पराया है बनाया।
चाहती है जब वह लफ्जों दो प्यार के,
हमने उसे बृद्धाश्रम का रास्ता दिखाया।
ना करो अनादर इस अनमोल देन का,
ईश्वर से भी ऊँचा स्थान हैं जिनका।
