बचपन के लम्हें
बचपन के लम्हें
वो बीते हुए दिन याद आते हैं मुझे
वो मुस्कुराते हुए पल याद आते हैं मुझे
वो अनुभवहीन, वो निश्चिन्त सा जीवन
वो नादानी, वो नटखट मन।
हमेशा गलतियाँ कर जाना
फिर दोबारा उन्हें ही दोहराना
फिर डांट खाना और आंसू बहाना
रोता देख बड़ों का मुझे चुप कराना
अपने सीने से लगाना, लाड़ जताना।
मीठी खट्टी टॉफ़ी गोली का शौक था
पर बड़ों से पैसे मांगने का खौफ था
वो खौफ नहीं मन में उनका सम्मान था
हमारी इन्हीं बातों पर बड़ों को अभिमान था।
बच्चे थे हम साइकिल चलाना पसंद था
गली गली में घूम आना पसंद था
मांग करता था मैं
चार चक्के की साइकिल ला दो मुझे
कल ही आ जायेगी
बड़ों का बहाना था ये।
बस इसी में खुश हो जाता था
की मेरी मांग पूरी हो जायेगी
कल घर में साइकिल आ जायेगी
वाह वो भी क्या जमाना था
जब छोटी-छोटी बातों में खुश हो जाता था।
याद करता हूँ वो लम्हें जिंदगी के
चेहरा खुशी से लाल हो जाता है
वो प्यारा बचपन मुझे बहुत याद आता है
कभी बहुत गुदगुदाता है,
कभी खुशी के आंसू ले आता है।।