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Swapnil Jain

Abstract Others

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Swapnil Jain

Abstract Others

किताबों की वेदना

किताबों की वेदना

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दराजों में बंद सी पड़ी हैं किताबें

लगी धूल वर्षों से दबी हैं किताबें


कि दीमक उन्हें अब चुने जा रही है

किताबें दराजों से झांके जा रही है


पढ़ें कोई, पन्ने पलट के तो देखे

नजर को फिरा, मेरी हालत तो देखे


मैं शब्दों भरी हूं मुझमें ज्ञान खजाना

जो कहते हैं उनको मेरे हालात बताना


बुद्धि में ज्ञान का दीपक जलाती

अंधेरे में जुगनू की तरह जगमगाती


मगर आज बेबस सी लाचार हूं मैं

बंद हूं दफन सी दराजों में हूं मैं


कंप्यूटर मोबाइल से फुरसत नहीं है

टीवी और रेडियो भी कुछ कम नहीं है


हाथों में उठने तरस सी गई हूं

आंखों में नमी सी अब बरस सी गई हूं


बिकने लगी हूं, चौराहों में अब मैं

कभी थी आसमां, राहों में अब मैं


मगर आज बेबस सी लाचार हूं मैं

बंद हूं दफन सी दराजों में हूं मैं।


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