Swapnil Jain

Abstract Inspirational

4.5  

Swapnil Jain

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गुलाबी कुर्ता

गुलाबी कुर्ता

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छड़ी उठा कर निकल चले

धोती मैला कुर्ता पहन चले


मन में था कुर्ता नया सिलाना है

रंग गुलाबी पहन कुर्ते का 

ग्राम भ्रमण में जाना है।


दर्जी को ढूंढा दादा ने

अपना नाप लिखाया है


नया गुलाबी कुर्ता सिल के

जल्दी ही दर्जी ने घर भिजवाया है।


दादा जी की आंखें तरस रही थी

अपना कुर्ता पाने को


मन में आस जगी हुई थी

कुर्ता पहन इठलाने को।


जैसे ही दादा जी ने पाया कुर्ता

खुश होकर उछल पड़े


निकाल पुरानी धोती कुर्ता

गुलाबी कुर्ता पहन के निकल पड़े।


कुर्ते में थी फूल पत्तियां

कुर्ते की शोभा बढ़ा रही


दादा जी का मन पंछी के जैसा

ची ची कर के चहका रही


दादा जी पहुँचें दादी के संग

दादी को, पहन के कुर्ता दिखा दिया


दादी भी मुस्काई जैसे 

बागों में पुष्प सा खिला गया


दादी धीरे से दादा से 

ये कैसा रंग सिलाया है


रंग तो फिर भी बहुत खूब

पर फूल पत्ती भी क्यूं गुदवाया है


फूल पत्ती भी गुदा लिया

पर क्या रंग तुम्हें ना पता चला


फूल लगे गुलाबी ठीक

पर पत्ती भी गुलाबी सिला लिया।


दादा जी बोले ना जाने तू

ये फैशन का जमाना है 


रंग कोई भी चल जाये

हमें किसे बतलाना है


खुद में जंचे काम ऐसा हो

और अपना विश्वास बढ़ाना है


कुर्ता मेरी पसंद सिला है

अब तो ग्राम भ्रमण में जाना है।


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