Swapnil Jain

Abstract

4  

Swapnil Jain

Abstract

कविताओं को समेट रहा हूँ

कविताओं को समेट रहा हूँ

1 min
364


अपनी बिखरी बिखरी सी 

कविताओं को समेट रहा हूँ

कभी किसी पन्ने में लिखे 

शब्द खोज रहा हूँ


तो कभी अपनी 

डायरियों को टटोल रहा हूँ

अपनी कल्पनाओं से लिखी 

पंक्तियों को खोज रहा हूँ

अपने जीवन के हर पहलूँ 

हर लम्हें को ढूंढ रहा हूँ


सफेद कोरे कागज सरीखे 

अपने जीवन में 

रंग भर सकूं 

ऐसी ही लिखी

अपनी बिखरी बिखरी सी

कविताओं को 

समेट रहा हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract