दो रोटी की बात है
दो रोटी की बात है
ये ना गाड़ी ना मोटर
ना बंगले की बात है।
ये ना शान ना शौकत
ना विलासिता की बात है।
ये ना छत की बात है
ना ये वक्त की बात है।
ये गरीबी ये लाचारी
ये जीने की बात है।
ये उस गरीब के बच्चों की
बस दो रोटी की बात है।
तन ढंकने को ना कपड़ा
ना सर पर कोई दीवार है।
बस आस है, विश्वास है
ये दो रोटी की दरकार है।
ये भूख ये बिलखता बचपन ही
इंसान को इंसान या हैवान बनाता है।
क्यों इन बच्चों पर किसी को
तरस नहीं आता है।
यूँ तो मंदिरों में खूब कमाते हो
अपनी नाम बढ़ायी।
दान देकर धर्मात्मा की पदवी पाते हो।
पर इन गरीब बच्चों को देखकर
क्यों अनदेखा कर जाते हो।
दो रोटी खिलाकर तो इन्हें देखो
ये दिल से दुआ सम्मान दे जाते है।
दानवीर मंदिरों में तो धर्मात्मा कहलाते है
दो रोटी खिलाकर तो देखो इन्हें,
ये बच्चे तो तुम्हें धरती का परमात्मा बुलाते हैं।