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Babita Consul

Abstract

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Babita Consul

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बीती रात कमलदल फूलें

बीती रात कमलदल फूलें

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गुनगुनाता मास कार्तिक 

भोर पलकों पर ख्वाब पलते 

मुखरित पहली किरण 

बैठ संग कदम के छाँव 


लगी सुनहरी दिशाएँ 

मन बटोही उड़ चला

राग छेड़े मन सुधियों ने 

बही सरि तरंगित जल धारें


पाखियों को देख कर 

नभ फैलाता बाहें 

मन सरोवर नभ सा नीला 

सोम सुधा झर आयी 

मंदाकिनी बहती धारा 


इठलाती पहन रेशमी बाना 

ओस की भीनी चादर 

पर हार शृंगार झर रहा 

देख कर शृंगार धरा का 

कमुदनी अकुलाती हिय में


बीती रात कमल दल फूले 

आस मन मे मिलन की 

राधा भूली सुध बुध 

हिय में झिलमिल प्रेम दीप।


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