बाल कविता : कैसे दिखते गांव
बाल कविता : कैसे दिखते गांव
काश ! अगर मैं चिड़िया होती,
दूर-दूर उड़घूम-घाम कर दूर गगन में,
अपना मन बहलाती।
ऊपर से कैसी दिखती है,
प्यारी धरती सारी।
कैसे दिखते नदी, झील सब,
खेत, बाग, फुलवारी।।
गहरा सागर, ऊंचे पर्वत,
कैसे दिखते होंगे ?
हरियाली के बीच नदी में
धीमे तिरते डूंगे।
बड़ी इमारत छोटे घर सब,
कैसे दिखते गांव ?
खिली-खिली-सी धूप कहीं की,
कहीं की गहरी छांव।
धीरे-धीरे उड़ती रहती,
हर दिवस हवा के संग।
बड़े मजे से देखा करती,
कुदरत के सारे रंग।
नहीं चाहिए थी गाड़ी, बस,
और न वायुयान।
उड़ते-उड़ते ही लख लेती,
सारा हिन्दुस्तान।