मैं बच्ची नादान
मैं बच्ची नादान


दाँत नहीं निकले थे मेरे अभी-अभी तो मैं तुतलाती थी
सुने सूखे पतझड़ में बासंती मौसम लाती थी।
अभी-अभी तो मम मम से पानी कहना सीखा था
अभी-अभी तो छोड़ पेंसिल, पेन से लिखना सीखा था।
अभी तो में छुपकर धीरे- धीरे सीढ़ी चढ़ना सीख रही थी
डोरीमोन को देख-देखकर उड़ना सीख रही थी।
अभी तो बालों में दो चोटी करना सीखा था
अभी-अभी तो गिरके उठना और संभलना सीखा था।
पर सपने सारे टूट गए और खाक मेरा श्रृंगार हुआ
दागी चेहरा देख के दर्पण टूट गया शर्मसार हुआ।
मैं रंग-बिरंगी कली सुगंध की मुरझाया सा फूल हुई
मर्द सभी पापा जैसे है बस इतनी सी भूल हुई।
नहीं रही अब मानवता, मानव को मानव मत बोलो।
मानव दानव से बदतर है, इनको दानव भी मत बोलो।
अरे खुले आसमां के नीचे अब बेटी घूम नहीं सकती
अब तो बच्ची होकर भी वो झूले पर झूम नहीं सकती।
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आबरू ना मेरी लुट जाए ये सोच सोच घबराती है
इसी बात के भय से बेटी कोख में ही मर जाती है।
फिर भी चुप्पी साधे हम सब मोम जलाते रहते हैं
आग लगी जो प्रतिशोध की उसे जलाते रहते हैं।
बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कहती रह जाती है सरकार यहाँ
मगर हवस से इज्जत की बह जाती पतवार यहाँ।
अरे, कोर्ट कचहरी बलात्कारियों को ले जाना बंद करो
हो जाए मजबूर मौत को उचित ये प्रबंध करो।
हैवान न जन्मे धरती पर फिर ऐसा ये झटका दो
गोली मारो छाती पर और चौराहे पर लटका दो।
काट दिए जाए जब पर तो तितली भी कैसे उड़ पाएगी
अगर बेटी नहीं बचेगी तो बेटी कैसे पढ़ पाएगी।
मंत्री संत्री सरकारे सब निंदा ही करते रहना
बेटी पर अत्याचार हुआ चुपचाप ही सहते रहना।
अरे, नारी के सम्मान की खातिर राजनीति का त्याग करो
नेता से पहले बाप बनो फिर अपनी बेटी याद करो।।