कौन है माता?
कौन है माता?
राज सभा में भीड़ बड़ी थी, पंडित ज्ञानी का जमघट था
नीति करो की न्याय करो की जैसे लगता मेला था
एक-से-एक बढ़कर वहाँ पर सभी विद्वान महान थे
न्यायाधीश थे, चौकीदार थे, लेकिन सब इंसान थे
एक एक करके बढ़ते जाते, प्रजापालक को शीश झुकाते
अपनी कथा व्यथा सभी वो भरी सभा में कहते जाते
न्याय प्रिय थे प्रजापालक वो भेद भाव ना करते थे
ज्ञानी, निर्धन, पूंजीपति, अज्ञानी सबको एक समान ही धरते थे
तभी वहाँ पर कंपित स्वर में द्वारपाल ने आवाज लगायी
दरवाजे पर दो माताएँ एक शिशु के अधिकार को है आई
राजा ने आदेश दिया प्रहरी को निर्देश दिया
जो भी कथन है उन दोनों का सुनने का संदेश दिया
बड़ी विचित्र ये घटना थी दो माता की दुर्घटना थी
दोनों अपना हक़ जतलाये मातृ प्रेम की ये वेदना थी
साथ दो-दो माताएं आई दोनों साथ में एक बच्चा लायी
एक दूजे पर पुत्र चोरी का रो-रोकर आरोप लगाई
सभी दरबारी उत्सुक दिखते, आपस में वार्तालाप थे करते
कैसे इनको न्याय मिलेगा, खुले नैन से कल्पना करते
आँधी आए तूफान आए, न्याय कभी ना डिगने पाये
चाहे दोषी लाखों छूटे पर निर्दोष सजा ना पाने पाए
दोनों ही कहती बच्चा उसका, वचन सत्या है जाने किसका
किसने जनम दिया है इसको, दुद्ध सिरा में बहता किसका
पहली बोली बच्चा है मेरा, इसमें अंश है सारा मेरा
छल का तू प्रयास ना करना, दिखा अगर कुछ प्रमाण है तेरा
दूजी बोली बच्चा मेरा दुद्ध पिया ना इसने तेरा
हाड़ मांस सब मुझसे आया, मेरी जैसी इसकी काया
दोनों ने गुहार लगाई नया करो हम करे दुहाई
मेरा बच्चा मेरा हों बस न इसमें अब विलंब हों कोई
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देखकर ये दुविधा भारी, विस्मित हों बैठे दरबारी
कैसे इसका हल निकलेगा, पालक कैसे विचार विचारी
राजा ने फिर भान लिया, अगला पिछला सब जान लिया
गोद ना कोई यूएनआई जावे मन में अपने ठान लिया
दोनों दावे पर अडिग रही, भाय न यूनामे तनिक रही
मिथ्यावाद प्राण घाती होगा, इसपर भी वो डटी रही
नैन नक्स से तेरा लगता, पर आचरण उसका है
अब तुम दोनों ही सच बतला दो, ये नवजात बालक किसका है?
फिर एक बार, एक ही स्वर में दोनों ने बोला हड़बड़ में
बच्चा मेरा हिय ये सच है तनिक न मिथ्या इस कथन में
हार कर फिर पालक ये बोला, प्रहरी लाओ तुम दो झोला
उठाओ कटार और वार करो, बच्चे के टुकड़े चार करो
जिसको जो मन चाहे ले जाए, हाथ पैर या पेट उठाए
सर और धर जो उठाएगा, बच्चा उसका था माना जाएगा
इतने में पहली माँ बोली, मेरे हाथों में दो झोली
सिर अपना मैं छुपा लूँगी, इसे मरता देख ना पाऊँगी
तभी आवाज दूजी की आई, बारी तेज गुहार लगाई
मैं पापन हूँ दंड मुझे दो, पर तुम इस बच्चे को तज दो
मैंने ही मिथ्या फैलाया, लालच में अपना मान गवाया
यही माँ है उस बच्चे की, मैं तो बस पात्र हूँ दंड की
देख सभी ये अद्भुत घटना, दरबारी थे सभी निरुत्तर
राजा ने आदेश सुनाया, सबको प्रश्न का मिल गया उत्तर
राजा बोले शिशु उसे दो, और पापन को कठोर दंड दो
जो अपने बच के के प्राण बचाए वही जगत में माँ कहलाए
जो तुम इसको तन से जनती, तो तुम इसका दर्द समझती
तेरी लालच ने घेरा तुझको, प्राण दंड मिलेगा तुझको
इतने में सच्ची माँ बोली, प्राण दंड ना देना उसको
चाहे वो माता ना होवे, लेकिन अपना ममता ना खोवे।