सबका प्यारा गिल्लू
सबका प्यारा गिल्लू
जाड़ों की सुनहरी धूप और शाम के धागे थोड़े कच्चे
मध्यान्ह की धूप सेंक रहे थे मेरी माँ, मैं और मेरे बच्चे।
नानी के घर आकर बच्चे भी दोनों दिखते बड़े ही खुश
इधर उधर वह कूद रहे और धमाचौकड़ी करें बहुत।।
माँ ने पास में फैलाए थे मूँगफली की कच्ची ताजी फलियाँ
छत के पास लगे पेड़ पर कूद रहीं थी दर्जनों गिलहरियाँ।
तभी एक नन्ही गिलहरी छत पर थीयूँ आई छिपते-छिपाते
लगता था जैसे आई हो मूँगफली के मीठे दानों को खाने।।
झबरीली पूँछ लिये वह फुदक रही थी इधर-उधर
देखा जब बच्चों ने उसे तो उन्हें मिल गया नया खिलौना।
एक कटोरी भरकर पानी और रखे कुछ मीठे दाने
कूद रहे खुश हो-होकर दोनों और गिल्लू से करते बातें।।
पहले तो गिल्लू डर के मारे थोड़ा सा पीछे को सरका
पर धीरे-धीरे शामिल हो गया वह भी बच्चों के ही संग।
चल पड़ा सिलसिला अब तो यह रोज सुबह और शाम का
तीनों मिलकर खेला करते और करते थे कभी एक-दूजे को तंग।।
अब तो ऐसा कोई दिन न था जो इन सबकी मस्ती न हो
अब तो गिल्लू के संग दूसरी गिलहरियों भी खिड़की से अंदर आ जातीं।
कभी अलमारी और कभी रोशनदान पर चढ़ जातीं
सारे कमरों में पूरे दिन आगे-पीछे, ऊपर-नीचे दौड़ लगातीं।
और फिर छुट्टियाँ खत्म हुईं, दिन वापस जाने का आया
अब गिल्लू न होगा संग सोच-सोच कर बच्चे हुए उदास।
क्यों न उसको साथ ले चलें माँ से किया सवाल
माँ तो कुछ बोल न पाई पर नानी ने लिया सँभाल। ।
मेरे प्यारे बच्चों सुन लो ऐसी गलती कभी न करना
कैद में कभी नहीं किसी जीव को रखना ।
छोटे गिल्लू का भी तो है अपना प्यारा परिवार
अलग न उनसे रह पायेगा ये नन्हा सा तुम्हारा यार।।
नानी की सयानी बातों को बच्चों ने दिल में सहेजा
जाते-जाते भी वह दोनों गिल्लू को ही देख रहे थे।
उनके जाने से मानो गिल्लू थी बहुत उदास
अब न वो कमरे में आती और न खिड़की के पास।।