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GURU SARAN

Tragedy

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GURU SARAN

Tragedy

निष्ठा की जंजीर

निष्ठा की जंजीर

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युगों युगों से होता आया

नारी का अपमान

जबकि पत्थर की देवियो का

हम करते हैं सम्मान


मंदिरों मे देवियो को

परीधान चढ़ाते हैं  

दर्शन की अभिलाषा मे

दुर्गम पर्वत पर चढ़ जाते हैं


कैसे वही हाथ

नारी का चीर हरण करता है

देव पुत्र हो कर भी

पाप वरण करता है। 


पत्नी को सम्पति मान कर

जुआ मे दांव लगा दो

ये कैसी राज सभा

जिसमे कुलवधु को निर्वस्त्र करा दो। 


धर्म राज कहलाने वाला

अधर्म का राही हो जाता है

चौसर और पासे का प्रेमी

क्यो धर्म राज कहलाता है। 


एक सती को वेश्या कह के

सतित्व का अपमान किया

व्यर्थ हुआ सब धर्म कर्म

कर्ण ने जितना भी दान किया। 


भीष्म पितामह बंधे हुए हैं

निष्ठा की जंजीर से

ऐसी उम्मीद नही थी द्रोपदी को

ऐसे महावीर से। 


बेचैन विदुर नेत्र हीन महाराज को

समझाते रहे

रोकिये राजन ये महा पाप

सह ना सकेगा कोई सती का श्र।प


चीर बढ़ाते रहे कृष्ण

पापी थक कर ठहर गया

पांडवो के नस नस मे

प्रतिशोध का जहर गया। 


महा भारत का बीज पड़ा

बीज से अंकुर फूटा

मारे गए सब महावीर

दुर्योधन का सपना टूटा। 


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