जिंदगी की जंग
जिंदगी की जंग


हवा माकुल ना थी
चारो ओर गहन अंधेरा था
कदम 2 पर ठोकरों के कबीले थे
ये सब समय का फेरा था।
हर कदम ठोकरों ने रोका
मै गिरता उठता चलता रहा
रास्तो से मै वाक़िफ़ ना था
लड़खड़ाता रहा सभलता रहा।
मैंने अपनी माँ को
जिंदगी की जंग लड़ते देखा है
वक़्त कैसा भी रहा
उसे आगे बड़ते देखा है।
यू तो हार उसका नसीब था
पर वो मन से कभी हारी नही
वो आज मे जीती थी
कल की कोई तैयारी नही।
जिंदगी की जंग
मैं अकेले लडूंगा
तूफानों मे रास्ता बनाते हुए
हर कदम आगे बढूँगा।