अपने देश मे अपनों के गुलाम
अपने देश मे अपनों के गुलाम
देश अपना लोगअपने
फिर आवाम बेहाल क्यों ?
मजदूर किसान का ये
हाल क्यों ?
सियासत का दामन
दागदार कयो ?
रूठी है, चमन से
बहार कयो ?
हर तरफ बेईमानों का बोलबाला है
ईमान वालो पर बड़े पहरे है
झूठ जीत रहा है
सतय का मुह काला है ?
लोक तन्त्र की बयार मे
नेताओ की मौज है
भूखे सोने वालो की
कयो इतनी लम्बी फौज है ?
कयो नफरत की गरम हवाएं
चल रही है
दहेज की चीता पर
कयो बहुए जल रही है ?
रोटी, कपडा, मकान
सबको हासिल कयो नही
मजलूमों की कस्ती के लिए
कोई साहिल क्यों नहीं ?
आज भी महफूज नही कयो
नारी का सम्मान
अपने आजाद मुल्क मे
इतना नारी का अपमान ?
मजहब की ऊँची दीवारें
मजहबी फसाद क्यों
उजड गयी भाई चारे की बस्ती
नफरत आबाद क्यों ?
फिर से क्रांति का विगुल
बजाना होगा
सोयेहुए लोगो को
एक बार फिर जागाना ।