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GURU SARAN

Abstract

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GURU SARAN

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अपने देश मे अपनों के गुलाम

अपने देश मे अपनों के गुलाम

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देश अपना लोगअपने

फिर आवाम बेहाल क्यों ? 

मजदूर किसान का ये

हाल क्यों ? 


सियासत का दामन

दागदार कयो ? 

रूठी है, चमन से

बहार कयो ?


हर तरफ बेईमानों का बोलबाला है

ईमान वालो पर बड़े पहरे है

झूठ जीत रहा है

सतय का मुह काला है ?

 

लोक तन्त्र की बयार मे

नेताओ की मौज है

भूखे सोने वालो की

कयो इतनी लम्बी फौज है ? 


कयो नफरत की गरम हवाएं

चल रही है

दहेज की चीता पर

कयो बहुए जल रही है ? 


रोटी, कपडा, मकान

सबको हासिल कयो नही

मजलूमों की कस्ती के लिए

कोई साहिल क्यों नहीं ? 


 आज भी महफूज नही कयो

नारी का सम्मान

अपने आजाद मुल्क मे

इतना नारी का अपमान ? 


मजहब की ऊँची दीवारें

मजहबी फसाद क्यों

उजड गयी भाई चारे की बस्ती 

नफरत आबाद क्यों ? 


फिर से क्रांति का विगुल

बजाना होगा

सोयेहुए लोगो को

एक बार फिर जागाना ।


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