नारी का जीवन
नारी का जीवन
नन्हें नन्हें हाथों से उसका छूना
छोटे - छोटे कदम बढ़ाना
बड़ा ही सुंदर दृश्य था वो
बहुत ही खास पल था वो
पायल की झंकार से घर गूंजता था
खिली - खिली हंसी से घर पूर्ण था
आधा - अधूरा शब्द सुनना अच्छा लगता था
आंख झपकते ही पाया कि वह तो कल था
बचपन को जहां वह गुज़ारती है
मां बाप भाई बहन का प्यार जहां वह पाती है
वह घर परिवार त्याग कर चली जाती है
एक अनजाने परिवार को अपना मान लेती है
आखिर बेटियां ही क्यों घर छोड़कर जाती है?
और ससुराल को अपना घर बना लेती हैं
ससुराल की वह लक्ष्मी बन जाती है
बहु होने का कर्तव्य निभाती है
पत्नी धर्म का पालन भी करती है
मां के रूप में ममता को निहारती है
बहू के रूप में घर को संभालती है
घर के कामकाज के साथ बाहरी काम भी निपटाती है
थके हारे आए पति की सेवा में एक चूक नहीं करती है
बच्चों की देखभाल में दाग नहीं लगने देती है
सारे सुख - दुख अकेली ही सहती है
पर किसी से कुछ ना कहती है
बहु होने के साथ बेटी का भी फर्ज़ निभाती है
खुद की खुशियों को त्याग कर सबकी ज़रूरतों का ख्याल रखती है
ऐसी त्यागी स्वच्छ निर्मल एक लड़की ही तो होती है
नारी एक नए घर का निर्माण करती है
नारी ब्रह्मा है जो जीवन का निर्माण करती है
नारी का हर रूप अनोखा होता है
नारी एक संरचना होती है।।
