द्रोपदी
द्रोपदी
माँग बैठी थी अनजाने में वर,
मिले मुझे सुशील, धर्मपरायण,
बलवान, सुंदर,
पाँच पांडवों को उसी हर्जाने
में पाया था
सूत पुत्र कह कर्ण पे द्रोपदी
खीझी थी,
अर्जुन के रूप, लावण्य पर
रीझी थी
मछली की आँख अर्जुन ने
बींधी थी,
पति के रूप में जयमाला
अर्जुन ने जीती थी,
भिक्षा समझ कुंती ने पाँचों में
बटवाया था,
कुंती की भूल बन गई द्रोपदी
के लिए शूल
दुर्योधन के मन में खोट तो
पहले ही आया था,
पर अँधे का पुत्र अँधा के कटाक्ष ने,
महाभारत का इतिहास रचवाया था
कर्ण ने स्वयंवर वाली खीझ
को हथियार बनाया था,
पाँच पतियों वाली का दंश
चुभाया था
तोलो फिर बोलो, नहीं तो
मुँह मत खोलो,
चीर तार्थ हो आया था,
पाँच पतियों वाली का कटाक्ष,
बना द्रोपदी का उपहास,
रजौनवृत्ती के बाद भी द्रोपदी को,
दुर्योधन ने भरी सभा में बुलवाया था
दुशासन को द्रोपदी ने बहुत
समझाया था,
वह उसे बालों से खींच कर
लाया था,
दुर्योधन ने अपनी जँघा पर
हाथ लगाया था,
द्रोपदी ने यूँ फरमाया था,
ये बैठे दिया हमारे,
सब नीची नज़र झुकाये,
मैं भरी सभा में रोऊँ,
क्या देख दया नहीं आये ?
ये दुःख दुःखयारी का,
जा रहा है धर्म, अबला नारी का
पाँचों पांडवों में से उठकर
कोई नहीं आया था,
तब श्री कृष्ण को बुलाया था
जब गज ने तुम्हें पुकारा,
फौरन आ फंद छुड़ाए
खिंच रही है तन से साड़ी,
क्या देख दया नहीं आये ?
ये दुःख दुःखयारी का,
जा रहा है धर्म, अबला नारी का
श्री कृष्ण ने आकर चीर
बढ़ाया था,
औऱतों का मान बढ़ाया था,
वहशी - दरिंदों को पाठ
पढ़ाया था,
द्रोपदी ने अपने उन केशों
को हथियार बनाया था,
दुशासन ने जिन पर हाथ
लगाया था,
उन केशों को दुशासन के
खून से धुलवाया था
द्रोपदी ने क्रू वंश को शाप
लगाया था,
द्रोपदी के शाप ने कौरव वंश का
नाश करवाया था
"वहशी - दरिंदों ये जान लो,
औरत की इज़्ज़त को पहचान लो,
इज़्ज़त पर जब -जब आँच आयेगी,
वह "शकुन" रण - बाँकुरी बन जायेगी"
