कुंती का संदेश
कुंती का संदेश
बारह साल वनवास पूर्ण कर
एक साल अज्ञातवास रह
शर्त पूरी कर दी पाण्डवों ने
अब आगे क्या हो
गहन चिंतन
केशव बोले -
मैं जाऊंगा बन शांति दूत
है महानता इसी में
कोशिश की जाये शांति की अंतिम चरण तक
और कोशिश की भी गयी
पर ताकत के मद में अंधे
माने नहीं कुछ भी
सुई के बराबर भूमि देना भी नहीं गवारा था उन्हें
कृष्ण मिले बुआ कुंती से
कुंती बोली केशव, यह क्या नाटक
शांति का अर्थ क्या है नजर में तुम्हारे
शांति मिलती कर अंत आतताइयों का
बिना लड़े , बिना मिटे
शांति मिली है किसी को
और बात अगर हो शांति मन की
तो काम, क्रोध, लोभ, मोह
न आने कितने आततायी बैठे हैं मन में
पहले मिटाना होता है उनको
तो शांति शव्द शुरू होता युद्ध के बाद
संदेश कहना मेरे बेटों से साफ
मिलेगी शांति भयानक युद्ध के बाद
तो कस लो कमर
टूट पड़ो आततातियों पर
फिर या जीना शांति से
या मिटाकर हस्ती खुद की
नाम लिखना शहीदों की किताब में
और मेरी बहू से कहना संदेश मेरा
एक जिम्मेदारी है तुझपर
है नहीं रोक तुझपर कोई
आ सकती है बेझिझक हस्तिनापुर
पर मत आना इस देश मेरी बेटी
रहना युद्ध शिविर में पूरे युद्ध
संभव है कभी कमजोर पड़ें बेटे मेरे
पर फिर देख खुले केश तेरे
कर याद अपमान तेरा
जूझेंगें समर भूमि में
न आना इस देश बेटी
जब तक पूर्ण न हो बदला
तेरे अपमान का।
