किसी को प्यास मिलती है
किसी को प्यास मिलती है
हवाएं जब गुजरती है समुद्री राह से होकर।
नमी सागर से उठती है ये बादल में बदलती है।
उठाकर गोद में अपनी फूल से नन्हे बादल को।
हवा सागर को छूती है कभी नभ में मचलती है।
श्वेत श्यामल बिछे गद्दे रवि किरणों की राहों में।
धरा तब धूप को तरसे किरण विश्राम करती है।
बरस जाते हैं ये बादल किसी आंगन में जाकर के
किसी के मन के आंगन की धरा प्यासी तरसती है।
नहीं सागर की है गलती न खता है ये बादल की
किसी को जाम मिलते हैं किसी को प्यास मिलती है।
