ॠतुराज की देवी
ॠतुराज की देवी
हे सरस्वति ज्ञान की देवी
आपका वंदन अभिनंदन है,
वीणा की तान जब छिडती
महक उठते वन उपवन हैं ,
ॠक् यजु साम अथर्व मां
गीत संगीत कलाविज्ञान मां,
अगम शब्द शक्तियां भरती
कीचड़ हरिचंदन प्रभाव मां
हे हंसवाहिनी पद्मासना मां
त्रिदोष मिटे सो स्वर खोलिए,
जड़ता मूढता का नाश मां
विश्वकल्याण हो तान छोडिए।
सृजन को सार्थकता आप हो
राग रसछन्द तुकलय आप हो,
स्मृति सांख्य दर्शन यशस्वी हैं
कोटि देवदेवियों ऊँ आप हो।
शिशुरुदन क्रन्दन कविता आपसे
कोयल काक का सुभान आपसे,
अखिलविश्व में स्वर गुंजायमान
ऋतु से ऋतुराज बनता आपसे।।