देखने दो चाँद को
देखने दो चाँद को
यह नागिन सी काली,
बलखाती सी रात भी,
श्वेत चांदनी की किरणों से,
मुंह मोड इतराती है।
एक बार जी भर के,
देखने दो चाँद को,,
इसके आने से धरती भी,
रोशन हो जाती है।
सुन्दरता का प्रतीक चंद्रमा,
नारी का उपमान बने,
तो घन की यह घनघोर घटाएं,
लज्जित हो जाती है।
प्रेम के सागर में यह चंदा,
डुबकी जब लगाता है,,
तो लहरें भँवर का रूप लेकर,
खुद ही भरमाती है।
चंद्रमा की सोलह कलाएं,
जीवन का आधार है,
इसके दर्शन को पलकें मेरी,
पल पल में हर्षाती है।
एक बार जी भर के,
देखने दो चाँद को,,
इसके आने से धरती भी,
रोशन हो जाती है।

