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सतीश कुमार

Tragedy Others

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सतीश कुमार

Tragedy Others

अकेला

अकेला

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मैं सबसे मिलना चाहता हूँ, पर सब मुंह मोड़ लेते हैं ।

अकेलेपन का शौक नहीं, लोग अकेला छोड़ देते हैं।। 

देख रहा बाहर का आलम,

कि दुनिया कैसी होती हैं,

धोखे की तस्वीर देख कर,

आंखें अक्सर रोती है। 

प्रीत पाना चाहता हूँ पर,

रीत नहीं पाने देती,

किस्मत कुछ ऐसी है,

हर पल इम्तहान जो लेती।।


मैं खुश हो जीना चाहता हूँ, खुशी ही छीन लेते हैं। 

अकेलेपन का शौक नहीं, लोग अकेला छोड़ देते हैं।। 

दर्द बड़ा होता है जब, 

अपना ही खंजर घोपे,

अपने लिए पीठ पीछे, 

नागफनी सा पौधा रोपे। 

आजकल विश्वास करना, 

घातक सिद्ध होता है,

कलयुग के जमाने में अब, 

सच वाला ही रोता है।।


मैं सबका मान रखता हूँ, अभिमानी समझ लेते हैं।

अकेलेपन का शौक नहीं, लोग अकेला छोड़ देते हैं।।


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