तू ही है संसार
तू ही है संसार
माटी के कण कण चुन चुनके,मैं खा जाता था,
और माँ की लोरी सुनके ही,मैं सो पाता था,,
मैने चाँद सितारे देखें हैं,और युग के लेखे देखें हैं,,
मैने ना जाने कितनी नदियों में,अमृत घुलते देखें हैं,,
पर ना देखा तो मैनें,मेरी माँ के जैसा दुलार,
और ना देखा उस लोरी जैसा,शब्दों का कोई हार,,
मैं एक डाल से फूट गया,जब माँ ने दिया सत्कार।
कि बेटा तू ही मेरा जीवन,तू ही है संसार।।
ओस बन के आँगन की दूब में,दरी पर बैठ जाती थी,
गोद में ले,छाती से लगा,कंठ को तर कर जाती थी,,
मैने छंदमुक्त लोरी की भाषा,सभी समझते देखें हैं,
और वर्तमान में तुलसी माँ के,चरण पूजते देखें हैं,,
पर ना देखा तो माँ की गोद में,कोई उजड़ा बाग,
और ना देखा माँ की ममता में,छल का कोई दाग,,
मैं पुष्प की भाँति खिल गया,डाली की सुनी पुकार।
कि बेटा तू ही मेरा जीवन,तू ही है संसार।।
