रामवाणी
रामवाणी
खुद नारायण जन्मे कौशल्या की कोख से
उठा कर बोझ राम का पावन हो गई धरती माँ रे
माता पिता के दुलारे तीनो भाईयो के प्यारे
ऐसे पूजनीय राम हमारे
और सब आत्म कथा सुनाते है रावण की
अब मेरे मुख से सुनो सत्य घटना प्रभु श्री राम की
माना रावण चारों वेदों का ज्ञानी था
मगर सृष्टि के विधाता के सामने अहंकार दिखाना भारी था
जो प्राणी कभी भी नहीं लेना चाहता था राम नाम
धरती पर मूर्छित होकर निकल गया उसके मुख से निकल गया राम नाम
स्वर्ग सिधार गया वह रावण भी जिसने अंतिम समय में लिया राम नाम
हमेशा से जिसने भोगा राज सुख वो क्या जाने वनवास की पीड़ा जिसका मन आ जाए किसी परायी स्त्री पर वो क्या समझेगे सच्चे प्रेम में विलाप के पीड़ा
चल राम की बनाई मर्यादाओ की राहों पर
मेरी नही राम की सुन पर
हर वर्ष मत कर रावण दहन मगर
अपने अंदर की बुराइयों के कर हर वर्ष दहन
और यू ही नहीं केवट पैर पखार पानी पीता है
यूं ही नहीं शबरी का सब्र कभी नहीं टूटा है
यू ही नही हनुमान लला चारो पेहर राम नाम जपते है
कुछ तो है राम नाम मे यूं ही नहीं त्रेयतायुग का राम नाम आज भी कलयुग में भी जोरो शोरो से गूंजता है
जय श्री राम