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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२४८; कालयवान का भस्म होना, मुचुकन्द की कथा

श्रीमद्भागवत-२४८; कालयवान का भस्म होना, मुचुकन्द की कथा

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

भगवान जब निकले मथुरा से

शोभा दर्शनीय थी उनकी

उन्हें देखकर कालयवान ने।


निश्चय किया कि हो ना हो

यही पुरुष वासुदेव हैं

लक्षण बताए थे जो नारद जी ने

सबके सब इसमें मिल रहे हैं।


बिना किसी अस्त्र शस्त्र के

इस और चला आ रहा

इसलिए इसके साथ मैं भी

बिना अस्त्र शस्त्र के लड़ूँगा।


ऐसा निश्चय करके कालयवान

कृष्ण की और था दौड़ा वो

रणभूमि से भाग चले कृष्ण

मुँह करके दूसरी और को।


प्रभु को पकड़ने के लिए

पीछे दौड़ा कालयवान था उनके

रणछोड़ भगवान श्री कृष्ण

लीला करते हुए भाग रहे थे।


पग पग पर यही समझकर कि

अब पकड़ा, अब पकड़ा उनको

अपने पीछे भगवान ले आए

बहुत दूर एक गुफा में उसको।


पहुँचे दोनों गुफा के पास जब

भगवान घुसे उसमें, वो भी घुसा था

वहाँ उसने एक दूसरे मनुष्य को

आराम से सोते हुए देखा।


उसे देख समझा कि कृष्ण ये

कहने लगा, ‘ देखो तो सही

मुझे इतनी दूर ले आया और

अब मानो इसे कुछ पता ही नही ‘।


यह सोचकर उस मूढ़ ने

कसकर एक लात मारी उसे

वह पुरुष सो रहा था

उस गुफा में कई दिनों से।


धीरे से आँखें खोलीं उसने

पैरों की ठोकर लगी तो

सामने कालयवान को देखकर

बड़ा रुष्ट हो गया वो।


कालयवान भस्म हो गया

उसकी दृष्टि पड़ते ही उसपर

राजा परीक्षित ने पूछा भगवन

पुरुष कौन था वो वहाँ पर।


कालयवान को भस्म किया जिसने

और वंश क्या था उसका

उसमें कैसी ये शक्ति थी और

गुफा में वो क्यों था सो रहा।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

इक्ष्वाकु वंशी राजा मचुकंद वे

सत्यप्रतिज्ञ, महापुरुष बड़े

मांधाता के वे पुत्र थे।


एक बार इंद्रादि देवता

असुरों से भयभीत हो गए

राजा मुचुकुन्द से प्रार्थना की

उन्होंने अपनी रक्षा के लिए।


बहुत दिनों तक रक्षा की थी

देवताओं की राजा मुचकुन्द ने

कुछ दिनों बाद सेनापति के रूप में

देवताओं को स्वामी कार्तिकेय मिल गए।


तब उन्होंने राजा से कहा

हम लोगों की रक्षा के लिए

आपने बहुत कष्ट उठाए हैं

अब आप विश्राम कीजिए।


हमारी रक्षा के लिए आपने

राज छोड़ दिया मनुष्य लोक का

पुत्र, पत्नी को छोड़कर

भोगों का भी त्याग कर दिया।


आपके पुत्र, स्त्रियाँ, बंधु सब

और प्रजा आपके समय की

काल के गाल में चले गए सब

उनमें से अब कोई रहा नहीं।


समस्त बलवानों में बलवान काल ये

सबको अपने अधीन रखता ये

राजन, कल्याण हो आपका

जो इच्छा हो माँग लीजिए।


कैवल्य मोक्ष के अतिरिक्त

हम सब कुछ दे सकते हैं

क्योंकि सामर्थ्य कैवल्य मोक्ष देने की

अविनाशी भगवान विष्णु में ही है।


राजा मुचकुन्द ने उस समय

देवताओं के आग्रह करने पर

वर माँगा निद्रा का ही

बहुत थका होने के कारण।


वरदान पाकर वे नींद में भरकर

पर्वत की गुफा में सो गए

देवताओं ने कह दिया था

मुचकुन्द को उस समय ये।


राजन, सोते समय यदि कोई भी

नींद से जगाएगा आपको

आपकी दृष्टि पड़ते ही वह

उसी क्षण हो जाएगा भस्म वो।


परीक्षित, कालयवान भस्म हुआ जब

तभी वहाँ पर कृष्ण आ गए

राजा को दर्शन देने के लिए

खड़े हो गए उसके सामने।


दिव्य मूर्ति देख भगवान की

राजा मुचकुन्द चकित रह गए

चकित होकर पूछा उन्होंने

कौन आप, किस प्रयोजन से आए।


क्या आप अग्नि, सूर्य, इंद्र हैं

बताइए आप अपने बारे में

इक्ष्वाकु वंशी क्षत्रिय मैं हूँ

मुचुकुन्द नाम, मांधाता पिता मेरे।


जागता रहा था बहुत दिनों तक

थककर सो गया था इसीलिए

इंद्रियों की शक्ति छीन ली थी निद्रा ने

इसलिए सो रहा इस गुफा में।


किसी ने अभी अभी मुझे जगा दिया

अवश्य ही इसके पापों ने ही

इसे जलाकर भस्म कर दिया

यहाँ पहुँचा दिया इसे उन्होंने ही।


समस्त प्राणियों के माननीय आप हैं

आपके दिव्य और अखंड तेज से

मेरी शक्ति खो गयी और मैं

देख भी सकूँ ना आपको इसलिए।


राजा मुचकुन्द ने जब ऐसा कहा

भगवान हंसते हुए बोले उसे

प्रिय मुचुकुन्द, हज़ारों जन्म, कर्म

और हज़ारों हैं नाम मेरे।


वे अनन्त हैं और सनकादि

वर्णन करें इन जन्म, कर्मों का

परन्तु निरंतर ये करने से भी

पार ना पा सकते वो उनका।


ऐसा होने पर भी मुचुकुन्द मैं

वर्णन करता हूँ तुम्हें, सुनो

वर्तमान जन्म और कर्म

और मेरे वर्तमान नाम जो।


ब्रह्मा जी ने प्रार्थना की थी मुझे

असुरों का संहार करने के लिए

इसी से वासुदेव जी के यहाँ

अवतार ग्रहण किया है मैंने।


इसलिए मुझे वासुदेव भी कहते

अब तक कई राक्षसों को मारा

कंस को जो कालनेमि था पहले और

प्रलंब आदि का संहार कर चुका।


राजन, यह कालयवान भी

मेरी प्रेरणा से ही यहाँ आया

तुम्हारी तीक्ष्ण दृष्टि पड़ने से

पल में ही वह भस्म हो गया।


तुमपर कृपा करने के लिए ही

मैं आया हूँ इस गुफा में

जो अभिलाषा हो तुम्हारी

माँग लो तुम अब मुझसे।


श्री शुकदेव जी कहते हैं जब

भगवान कृष्ण ने इस प्रकार कहा

राजा मुचुकुन्द को वृद्ध गर्ग का

यह कथन याद आ गया।


कि अवतीर्ण होने वाले हैं

भगवान पुरुषोत्तम यदुवंश में

यही सर्वथा नारायण हैं

इस बात को जान गए वे।


आनंद से भरकर भगवान के

चरणों में प्रणाम किया, स्तुति की

कहें ‘ प्रभु, अत्यंत मोहित हो रहे

आपकी माया से प्राणी सभी।


आप से विमुख होकर वे

अनर्थ में ही फँसे रहते हैं

घर गृहस्थी के झंझटों में पड़कर

आपका भजन नहीं करते हैं।


सुखों के लिए कर्म जो करते

मूल स्रोत वही उनके दुखों का

अत्यंत पवित्र कर्मभूमि ये

अत्यंत दुर्लभ जन्म लेना यहाँ।


अनायास ही इसे प्राप्त करके भी

लगाएँ गति मति असत् संसार में

गृहस्थी के अंधेरे कुएँ में पड़े रहें

तुष्ट विषय सुखों के लिए।


आराधना ना करें भगवान की

उन पशुओं के समान वे

अंधेरे कुएँ में गिर जाते जो

कुछ तुच्छ तृणों के लिए।


भगवन, मैं भी एक राजा था

मतवाला राजलक्ष्मी के मद में

मोह में खोया हुआ था

शरीर, पुत्र, पत्नी, पृथ्वी के।


शरीर को अपना स्वरूप मान लिया

नरदेव, मान बैठा अपने को

पृथ्वी पर घूमता रहता

लेकर चतुरंगिणी सेना को।


मनुष्य चिंता में पड़कर ही

विविध कर्तव्यों और अकर्तव्यों की

असावधान हो जाता है वो

विमुख हो भगवत् प्राप्ति से ही।


भगवतप्राप्ति एकमात्र कर्तव्य है

इससे विमुख हो बढ़ती ही जाती

दिन दूनी और रात चौगुनी

विषयों में लालसा उसकी।


एकाएक कालरूप आप उसपर

टूट पड़ते और ले बीतते उसे

नरदेव कहलाता था शरीर जो पहले

हाल उसका फिर होता है ये।


बाहर फेंकने पर पक्षियों की विष्ठा

कीड़ा बने जो धरती में गाड़ दें

और राख का ढेर बन जाता

जला दें जो उसको आग में।


बहुत से लोग विषय भोग छोड़कर

पुनः राज्य आदि मिल जाए

दान पुण्य करें इसी इच्छा से

ये कामना रख शुभकर्म हैं करते।


तृष्णा बढ़ी हुई जिनकी इस तरह

सुखी नहीं हो सकते हैं वो

अनादि काल से भटक रहा है

जन्म मृत्यु के चक्र में जीव तो।


चक्र से छूटने का समय जब आता

सत्संग प्राप्त होता है उसे

आप में लग जाती उसकी

बुद्धि बड़ी ही दृढ़ता से।


परम अनुग्रह किया मेरे ऊपर

कि बिना किसी परिश्रम के

मेरे सारे बंधन तोड़ दिए

बस अनायास ही आपने।


आपके चरणों की सेवा के सिवा

मैं और कोई वर नही चाहता

मोक्ष देने वाले आपसे

वर मैं ना माँगूँ विषयों का।


समस्त कामनाओं को छोड़कर

आपकी शरण ग्रहण करता मैं

अनादि काल से कर्म फलों को भोगता

अत्यंत आर्त हो रहा मैं।


किसी प्रकार एक क्षण के लिए भी

शांति नहीं मुझे मिल रही

अतः भय, मृत्यु, शोक से रहित

शरण में आया आपकी।


श्री कृष्ण कहें, महाराज तुम्हारी

भक्ति, निश्चय है उच्च कोटि का

तुम्हारी परीक्षा के लिए ही मैंने

वर देने का प्रलोभन दिया।


अनन्य भक्त होते जो मेरे

भटकें ना तुच्छ कामनाओं से

और जो मेरे भक्त नहीं होते

प्रयत्न करने पर भी भटक जाए वे।


फिर से मचल पड़ता है

विषयों के लिए मन उनका

मुझ में ही समर्पित कर दो

प्रेम से तुम सब कुछ अपना।


उसके बाद इस पृथ्वी पर

विचरण करो स्वच्छंद रूप से

मुझमें तुम्हारा अनन्य प्रेम हो

निर्मल भक्ति सदा बनी रहे।


क्षत्रिय धर्म का आचरण करते हुए

अवसर पर शिकार आदि के

कई पशुओं का वध किया तुमने

पाप जो लगा तुमको उनसे।


एकाग्रचित्त हो मेरी उपासना करो

तपस्या से पाप वो धुल जाएंगे

प्राणियों के हितैषी सुहृद होकर फिर

मेरा परमपद प्राप्त करोगे।


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