विनती सुनलव राम लला जी
विनती सुनलव राम लला जी
सुनलव विनती राम लला जी, लेव फेर अवतार
कलयुग मा बढ़गे हे पापी , राम भव ले उबार
ऊंच नीच अउ भेदभाव के, जम्मो कोती जाल ....
जात धरम अउ पाप करम के, बगरे हे जंजाल ....
सत के रद्दा माट पटागे, अंतस बइठे काल....
भगवा झंडा अउ लहरा दव, कौशल्या के लाल.......
कांशी काबा एक करा दव, झन होवय जी मार।।।
सुनलव बिनती राम लला जी, लेव फेर अवतार
झूठ लबारी चोरी हतिया, निंदा सांझ बिहान।
कोर कपट के बानी सुनलव, नाचय दरुआ मचान।
गरभ म चीखय देखव लइका, नारी बनय दुकान....
साधु संत के कोन भरोसा, कचरा परगे ज्ञान....
मानवता के जोत जला के, करव दूर अंधियार।
सुनलव बिनती राम लला जी, लेव फेर अवतार।
रुख धरा के जमो नोचइया, सुतय ज्ञानी उतान।
देख हुंकारत गरुआ बइठे, लिलत भुइयां किसान।।
नाता जमो पईसा बनगे, रोवत बूढवा सियान.....
लखन भरत कस भाई देदव, केंवट असन मितान।।
काम क्रोध अउ लोभ मिटा के, करव राम उद्धार........
सुनलव बिनती राम लला जी, लेव फेर अवतार।
