'ऋतुराज वसंत का आगमन'
'ऋतुराज वसंत का आगमन'
बीत गया शिशिर, गुजर गई हेमंत
बहत झेल ली सर्द रातें और
झुलसाने वाली गर्मी प्रचंड,
पतझड़ के बाद आखिर
आ ही गया 'ऋतुराज वसंत।
धानी चुनरी ओढ़ कर
धरती चूम रही कदम,
रूप ऐसा निखर रहा मानो
दुल्हन सजी है बन-ठन,
आ गया देखो ऋतुराज वसंत।
कोयल की कुहूक,
पपीहे की पीऊ-पीऊ
भौंरों की गुंजार,
फूलों को भी हो गया है
सतरंगी तितलियों से प्यार,
निखर रही छटा प्रकृति की अतरंग,
संगीत के सातों सुर भी मन को
भा रहे एकदम रमें- रमंत
आ गया देखो ऋतुराज वसंत।
स्वागत के बखान में क्या लिखें ये भी
सोच रहे प्रकृति के सुकुमार कवि पंत,
झुम रही लताएँ, झुकी डालियाँ तंग
रास आ रहे सभी ऋषि -मुनि को इसकी सौंदर्य,
भजन-कीर्तन कर रहे सभी साधु संत,
आ गया सपनों का मेरा वसंत।
जल में जल- क्रीडा कर रहे मीन, पावस हंस
सरसों की सुनहरी सुमन बोल रही
क्यों समीर इतना कर रहे हमें तंग,
तन - मन को सुरम्यता का भान हो रहा,
आनंदित हैं सभी जन।
आ गया देखो ऋतुराज वसंत
बीत गया शिशिर, गुजर गई हेमंत ,
सामने आ गया ऋतुराज वसंत,
आ गया देखो ऋतुराज वसंत।
