।। रमणीय रामायण ।।
।। रमणीय रामायण ।।
विष्णु जी के सातवे अवतार थे श्रीराम
अत्यधिक गुणवान, प्रतिभाशाली, सरल स्वभाव जैसा उनका नाम ।।
अयोध्यापति दशरथ नंदन की तीन रानी,
कौशल्या, सुमित्रा, कैकयी, सब बनी राजरानी।।
उनकी ख्याति बहुत महान
पर कोई ना संतान।।
पुत्र्योष्टि का यज्ञ कराया,
चार पुत्रों का शुभ फल पाया।।
शत्रुघन, लक्ष्मण, भरत और राम,
इनके नाम मे चारो धाम।।
चारो बालक चले गुरुकुल की ओर
महर्षि वसिष्ठ से जोड़ी ङोर ।।
जनकपुरी में हुआ स्वयंवर,
पहुँच गए सारे दिगंबर।।
पर राम जी ने शिव धनुष तोड़ा
और सीता माता से नाता जोड़ा।।
राजा दशरथ अब वृद्ध हो आए
सोचा अब पुत्र राज्य शासन चलाए।।
अब राजा बनने की आई बारी
उत्साह से भर आए सभी नर नारी ।।
मंथरा ने माता कैकेयी का ध्यान भटकाया
भरत के लिए राजपाट मंगवाया ।।
चौदह वर्ष वनवास में राम
बात सुनकर हिल गए चारों धाम ।।
लक्ष्मण सीता गए संग
कैकेयी मंथरा के जीवन में उमंग ।।
भरत को राजगद्दी दिलायी
परंतु उन्होंने तुरंत ठुकराई ।।
दशरथ रहने लगे बिमार
पुत्र वियोग का कष्ट अपार ।।
राम लक्ष्मण और सीता ने धारण किया साधू का वेश
जंगल में वनवास के लिए किया प्रवेश ।।
राम जी को ले ने भरत गए
अटल प्रतिज्ञा राम किए ।।
भरत ने मानी उनकी बात
प्रतिज्ञा का किया सम्मान ।।
राजगद्दी पर खड़ाऊ रखी
सबने उस बात से करी सखी ।।
वन में थे राक्षस कई
वन को दूषित करते सभी ।।
जैसे ही लक्ष्मण ने काटी शूर्पणखा की नाक
शुरु हो गई राक्षसों की ताक झाक।।
वन में पहुँचा एक अभिमानी
मारीच नाम अति ज्ञानी ।।
बनकर आया सोने का हिरण
सीता माँ ने दिया उसका विवरण ।।
राम जी ने स्वर्ण हिरण की शुरू करी खोज
और उठाना पङा मारीच के कपट का बोझ।।
उसने छल से राम की गुहार लगाई
सुनते ही विचलित हो उठी सीता माई ।।
लक्ष्मण को दी राम की सों
की वह जाए अगर करते हैं राम से मोह ।।
इतने में रावण ने बन साधु किया सीता हरण
श्री रामजी जा पहुंचे सुनने जटायु से विवरण ।।
वन वन भटके दोनों भाई
पर सीता की सुध ना पाई ।।
मिलना था अब हनुमान से
बुद्धिमान ज्ञानी और अति बलवान से ।।
सुग्रीव थे वानर राज
इक्ट्ठा किया अपना पूरा समाज।।
वानर जाति का किया कल्याण
सबके रक्षक हैं श्रीराम ।।
सबका था यह दृढ संकल्प
माता सीता को छोड़ना था तुरंत ।।
चारों ओर का हुआ प्रशिक्षण
हर जगह का हुआ निरीक्षण ।।
चले पवनसुत दक्षिण की ओर
मन में राम राम की जपी डोर ।।
चले अब लंका की ओर
जहाँ थे अपराधी घोर ।।
सीता जी से वह मिले
सभी के चहरे खुशी से खिले ।।
माता ने दी मुद्रा निशानी
सुनाने लगे श्रीराम की कहानी ।।
रावण ने लगाई हनुमान की पूंछ में आग
हनुमान ने जलाई लंका और कर दी राख ।।
चले लांघ समुद्र महाकाय
सीता माँ की सुध ले आए।।
सीता माँ का सुनाया हाल
और बताया रावण का जाल ।।
सेतु बांधा समुद्र के सहारे
पार करी सबने लहरें ।।
रावण एक महा अभिमानी
विभीषण की एक न मानी ।।
मंदोदरी उसकी महारानी
उसकी भी एक न मानी ।।
विभिषण को दे देश निकाला
लंका का विनाश लिख डाला ।।
घर का भेदी लंका डाये
और अपनों की नईया डूबाये ।।
चले विभिषण राम के पास
मिटाने कई जन्मों की त्रास ।।
प्रभुराम ने सोचा युद्ध नहीं हैं सारा हल
शांति की बात करने की सोची कल ।।
राम ने चाहा अंगद अब जाए
रावण को यह कहकर आए ।।
अंगद ने जा राजमहल में अपना शांति संदेश सुनाया
पर उस अभिमानी रावण की समझ न आया ।।
तब राम नाम अंगद ने लेकर वहीं अपना पैर जमाया
और राम नाम मन में समाया।।
लंबी लगी कतार , सबको मिला एक एक क्रम
परंतु विफल हुआ सबका परिश्रम ।।
अब निश्चित हैं युद्ध का होना
रावण का अपनों को खोना ।।
जाकर कुंभकरण को जगाया
परंतु मार उसे यमराज को पहुँचाया ।।
युद्ध की इच्छा से जो आए
सबने अपने प्राण गवाए ।।
वानर सेना में उत्साह का शोर
लंका पति पर छाये बादल घोर ।।
युद्ध हुए दिन और रात
रावण ने ना मानी किसी की बात ।।
एक से एक योध्दा आते
लेकिन अपनी जान गवाते।।
अब सुत मेघनाथ से रावण की आस
कई शक्तियाँ उसके पास ।।
लक्ष्मण को युद्ध में हराया
लक्ष्मण दर्द से खूब करहाया ।।
शक्ति मेघनाथ ने छोड़ी
राम लखन की जोड़ी तोड़ी ।।
सब पहुँचे वेद के पास
वहाँ भी लक्ष्मण को बचाने की आखिरी आस ।।
अब लक्ष्मण को संजीवनी बचाए
पर सवाल उठा अब कौन जाए ।।
अब हनुमंत सामने आए
लाये संजीवन लखन जियाए ।।
वानर सब उनको समझाये
कि सूर्योदय से पहले आए।।
चले पवनसुत उत्तर की ओर
बचाने लक्ष्मण के प्राणों को डोर।।
अब तो जब मेघनाथ का सिर होगा उससे भिन्न
वही होगा लक्ष्मण के जीत का चिन्ना ।।
अब तो लक्ष्मण ने ललकारा
युद्ध करने को उसे पुकारा ।।
उसकी सभी शक्तियाँ करी विफल
और अपने लक्ष्य में हुए सफल ।।
अब युद्ध करेंगे रावण राम
तभी पता चलेगा युद्ध का परिणाम ।।
यही है अब बस राम की इच्छा
रावण को अब देनी है शिक्षा ।।
युद्ध हुआ बड़ा भयंकर
देख रहे ब्रह्मऔर शंकर ।।
जो जो शीश रावण के काटे
वर के कारण वापस जाते ।।
अब विभिषण सामने आया
अमृत का रहस्य बताया ।।
अग्निबाण नाभि पर मारा
रावण को मोक्ष दिलाया ।।
बिना राम से मुक्ति पाना
रावण का असंभव था जाना ।।
जो राम का नहीं
वो काम का नहीं ।।
यह बात सबने है जानी
और छोड दी अपनी मनमानी ।।
पुनः मिले सियाराम
सबके बनते चले गए काम ।।
अयोध्या लोटे सीता और दोनो भाई, ऐसा आनंद था छाया,
मंगल गीत और ढोल नगाड़े , उत्सव था जैसे आया ।।
।। राम राम जी।।
