कोहरे की चादर
कोहरे की चादर
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सखे,
और बारिश ने ठंडक बढ़ा दी सखे,
अच्छे खासे बदन थरथराने लगे,
'राज' की हड्डियां खडखडा दी सखे,
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सखे,
एक दूजे को पागल बनाने लगे,
हल्ला गुल्ला मचाकर नहाने लगे,
किया पानी गरम पर नहाए नहीं,
हमने पानी को पट्टी पढ़ा दी सखे,
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सखे,
बडा मन था शिमला घुमाएं उन्हें,
कंपकंपाती सी सर्दी दिखाएं उन्हें,
चार बूंदें जो उनके बदन पर पड़ी,
गुस्से में झट से बांहें चढ़ा ली सखे,
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सखे,
सूर्य का तम भी बेदम हुआ है पडा,
रथ का पहिया रुका नम हुआ है खड़ा,
धूप अब लोरियां गुनगुनाने लगी,
आग ने अपनी आफ़त बढ़ा ली सखे,
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सखे,
आग की लौ लपट छोटा बच्चा लगे,
मूंगफली रेवड़ी खाना अच्छा लगे,
गोभी के हों पकौड़े जो गरमागरम,
चिलम हमने अपनी गढ़ा दी सखे,
कोहरे ने आज चादर चढ़ा दी सख...
