पुए(गुलगुले)
पुए(गुलगुले)
सुनायी मम्मी ने मुझे बचपन की कहानी
मीठा खाने का उनसा कोई न है सानी
भरी दुपहरि उनको खाना था मीठा पर सो रही थीं नानी
भैया के साथ परात भर घोल लिया आटा चीनी
माप तौल नहीं किया बस कढ़ाई चढ़ा
तेल डाल बनाने बैठे गये पुआ
आ धमकीं दुपहर में उनकी बड़ी ताई,
नानी को जगा...मम्मी,मामा की फटकार लगवायी
और जाते जाते भगौने भर पुए लिये यें कहती चली गयीं
कौन खायेगा ये पुए और खुद के घर शाम की रोटी बनी नहीं
शौक़ तो मेरी माँ का है अभी भी वही
बस उनको अब शुगर हो गयी।
