बुढ़ापे में प्रेमान्जली
बुढ़ापे में प्रेमान्जली
बहुत दिनों के बाद आज ये क्या हुआ है
प्रेम का वही अंकुर आज फिर जवाँ हुआ है
हो रहा आज मुुुझसे ये कैसा जुर्म
होने को आई है अब साठ की उम्र
अब टिकी हुई है बाकी जिंदगी मेरी दवा पर
फिर भी उड़ने को तैयार हूँ अब भी मैं हवा पर
नत्नी नाती पूछ रहे कि नाना तुमको हुआ ये क्या
दर्पण में खुद को निहारते आखिर करते रहते क्या
कोई मुझको भाया इतना कैैैसे उनको बतलाऊँ मैं
जी करता है कभी कभी ले उसको भाग जाऊँ मैं
क्या कहूँ उसका चाँद सा मुखड़ा जो देखा
भूल गया अपनी ये ढलती उम्र की रेेेखा
लोग भी अब मुुुझको बुरी तरह घूरने लग गये
नींद से सोये पड़ोसी भी कान खड़े कर जग गये
इतना प्यार करने लगा कि नींद मुुुझे अब आती नही
आती है तो फिर सपनों मेें वो,अपने घर को जाती नही
दे भी नहीं सकता इसको अब तो मैं तिलांजली
बड़ी मुश्किल होता है जीवन के इस मोड़ पर प्रेमान्जली !