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Mani Loke

Abstract Comedy Classics

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Mani Loke

Abstract Comedy Classics

बेदर्द उम्र

बेदर्द उम्र

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उम्र बड़ा बेदर्दी है इसकी गिनती दिल को देती तकलीफ है। 

ज़रा सा जो जीन्स पहनना छोड़,सलवार कमीज में गई दुकान,

पीछे से आई आवाज़ आंटी पहले मुझे लेने दो सामान।


अचम्भे सी पीछे मुड़ी,लगा इज़्ज़त हो गई नीलाम,

छोटे से बच्चे ने देखो जैसे एक आवाज़ में लेली हो मेरी जान। 

शादी हुई फिर,समझ आया,देखो तो रिश्तों का ऐसा सैलाब आया ,

चाची, मामी शब्द लगते बड़े प्यारे,पर वही अंग्रेजी में कोई कहे

आंटी तो बड़ा जाते उम्र कई साल आगे.

गिनती उम्र की कर लेते है, उस इक शब्द में देखो,लोग सयाने,


फिर एक टीस सी दिल में उठती है,

और लगता है ये, उम्र बड़ी बेदर्दी है,इसकी गिनती दिल को देती तकलीफ है । 

फिर जब मेरे बच्चों की आयी बारी,उनके दोस्तों से की खूब दोस्ती यारी। 

उनका आंटी कहना भी लगता प्यारा, लगता जैसे दिल तो अब भी बच्चा है हमारा।

झटका लगा फिर उस दिन हमको,पड़ोस के काकू की दुल्हन जब बोली आंटी हमको,


जतलाया हमने इशारों में उसको भाभी या दीदी कह सकती हो हमको,

नादाँ दिल अभी संभल भी न पाया की ननद की नातिन ने नानी बुलाया,

गिनती इक बार उम्र की फिर याद आयी,

पर इस बार अपनी देवरानी के लिए भी नानी संबोधन सुन,

दिल में एक सुकून की लहर दौड़ आयी..


उसके चहरे पे अब वही तकलीफ थी छायी,

और फिर इक बार लगा ये उम्र बड़ा बेदर्दी है,

इस की गिनती हर उम्र में देती तकलीफ है।


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