बस का सफर
बस का सफर
बस के किस किस सफर के बारे में बताएं
सहे गए अनगिनत कहर के बारे में बताएं
जब अंदर पैर रखने को जगह नहीं होती
तो छत पर बैठ किए गए सफर के बारे में बताएं
वो भी एक समय था जब लोग
खिड़की से सामान सीट पर डाल देते थे
सामान नहीं होता तो जेब से रूमाल निकाल
सीट पर रखकर उस पर अधिकार जमा लेते थे
भीड़ भड़क्के में बस में चढ़ना किसी
एवरेस्ट पर चढ़ने से कम नहीं लगता था
ऐसे में जेबकतरों द्वारा पर्स पार कर लेना
कुंभीपाक नर्क से कम नहीं लगता था
जेबकतरों के सितम से भी उबर जाते थे
मगर किसी की कातिल निगाहों में उलझ जाते थे
न जाने कितनों ने एक दिल हजार बार लूटा
इस चक्कर में सामान भी कई बार बस में ही छूटा
बगल वाली अधेड़ औरत के जरा सा टच होते ही
वह खा जाने वाली निगाहों से देखती थी
और यदि दो देवियों के बीच में फंस गये तो
"बजरंग बली" का जाप करते हुए ही कटती थी
कभी बस खराब हो गई तो
बीच सड़क पर उतार दिया जाता था
फिर दूसरी ठसाठस भरी बस में
भेड़ बकरियों की तरह चढ़ा दिया जाता था
कुछ लोग टिकट लेने में महाभारत करने लगते
बच्चों के टिकट पर अक्सर लोग झगड़ते
सामान का आधा टिकट बोझ लगने लगता
कभी स्टूडेंट वाली रियायत के लिए अड़ते
इस तरह बहुत सी खट्टी मीठी यादें है
हर सफर की अनगिनत सी बातें हैं
अब तो "कार" ने बस यात्रा छुड़ा दी है
पर स्मरण में बसी हुई अनेक यादें हैं
श्री हरि