STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Comedy Action

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Comedy Action

बस का सफर

बस का सफर

2 mins
275

बस के किस किस सफर के बारे में बताएं

सहे गए अनगिनत कहर के बारे में बताएं

जब अंदर पैर रखने को जगह नहीं होती 

तो छत पर बैठ किए गए सफर के बारे में बताएं

वो भी एक समय था जब लोग 

खिड़की से सामान सीट पर डाल देते थे 

सामान नहीं होता तो जेब से रूमाल निकाल 

सीट पर रखकर उस पर अधिकार जमा लेते थे 

भीड़ भड़क्के में बस में चढ़ना किसी 

एवरेस्ट पर चढ़ने से कम नहीं लगता था 

ऐसे में जेबकतरों द्वारा पर्स पार कर लेना 

कुंभीपाक नर्क से कम नहीं लगता था 

जेबकतरों के सितम से भी उबर जाते थे 

मगर किसी की कातिल निगाहों में उलझ जाते थे 

न जाने कितनों ने एक दिल हजार बार लूटा 

इस चक्कर में सामान भी कई बार बस में ही छूटा 

बगल वाली अधेड़ औरत के जरा सा टच होते ही 

वह खा जाने वाली निगाहों से देखती थी 

और यदि दो देवियों के बीच में फंस गये तो 

"बजरंग बली" का जाप करते हुए ही कटती थी 

कभी बस खराब हो गई तो 

बीच सड़क पर उतार दिया जाता था 

फिर दूसरी ठसाठस भरी बस में 

भेड़ बकरियों की तरह चढ़ा दिया जाता था 

कुछ लोग टिकट लेने में महाभारत करने लगते 

बच्चों के टिकट पर अक्सर लोग झगड़ते 

सामान का आधा टिकट बोझ लगने लगता 

कभी स्टूडेंट वाली रियायत के लिए अड़ते  

इस तरह बहुत सी खट्टी मीठी यादें है 

हर सफर की अनगिनत सी बातें हैं 

अब तो "कार" ने बस यात्रा छुड़ा दी है 

पर स्मरण में बसी हुई अनेक यादें हैं 


श्री हरि 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract