बिना फोन वाला शहर
बिना फोन वाला शहर
क्या गजब करते हो जी
सुबह सुबह ही बहकते हो जी
आज ना तो "अप्रैल फूल" है
और ना ही फागुनी मस्ती का झूल है
बिना फोन वाला गांव तो हो सकता है
पर बिना फोन के शहर कैसे रह सकता है ?
तब हम कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाने लगे
बिना फोन वाले शहर का अनुमान लगाने लगे
ऐसे शहर में ना कोई गूगल देवी होगी और ना यू ट्यूब देवा
फेसबुक और व्हाट्सएप का ना होगा कोई नाम लेवा
घर में सब लोग एक साथ मिल बैठते होंगे
दुख दर्द में तो शायद मिलने जाते होंगे
पति पत्नी में खिच खिच ज्यादा रहती होगी
बीवी घर के भी कुछ काम करती होगी
वर्क फ्रॉम होम तो उनके लिए सपना होगा
ना चाहते हुए भी सबको काम तो करना होगा
लोग बैंकों में पासबुक में एन्ट्री कराने जाते होंगे
ए टी एम दिखाने के लिये बच्चों को दूसरे शहर ले जाते होंगे
टिकट खिड़की पर भीड़ का हो हल्ला होता होगा
रात को पूरा शहर चैन से सोता होगा
जब फोन नहीं होगा तो लोग भी स्वस्थ होंगे
अपने दिन प्रतिदिन के कामों में व्यस्त होंगे
ऑनलाइन प्रेम की संभावना ही नहीं है
खतो किताबत के बिना बात आगे बढनी नहीं है
शॉपिंग के लिए बाजार जाना ही होगा
ना स्विग्गी, ना जोमेटो सर्विस, घर में खाना बनाना ही होगा
आदमी चौराहों पर ताश पीटते मिल जायेंगे
कहीं कहीं हंसी ठठ्ठा के स्वर भी सुने जायेंगे
बड़ी अजीब सी दुनिया होती होगी उनकी
बिना फोन के भी कोई जिन्दगी होती होगी उनकी।