हाय कारोना--व्यंग्य
हाय कारोना--व्यंग्य
तूने ऐसा तांडव किया, दुश्वार हो गया जीना
कोराना, हाय कोराना, कोराना हाय कोराना
सुबह-शाम जो घूमने जाते, उंगलियां छू जातीं
सारी नसों में बिजली की तरंगें दौड़ सी जातीं
मुड़ मुड़ हमें मुस्कराते, हम भी तो मुस्काते थे
उनके मम्मी पापा कुछ भी नहीं समझ पाते थे
बाग की कलियाँ हमारे मिलन पर शर्माती
भौरे गाने गाते शाम में जुगनू भी लाइट जलाती
तू आया तो फिर गया पानी, हो गया जादू टोना
कोराना, हाय कोराना, कोराना हाय कोराना
हाथों में ग्लवस आ गये, मुंह पर लग गया पट्टा
सूने हो गये मिलन केन्द्र और भूले हँसीं ठट्टा
अब खिड़की पर बैठ कर, आंखें करती चार
टच करने की कोशिशें, अब तो हो गयी हैं बेकार
उनके पापा मम्मी अब बिना चिंता के हैं जीते
बाल्कनी में बैठ बैठकर, चाय दिखाकर पीते
घर में देखो मम्मी डांटे, बाहर प्राण हैं खोना
कोराना, हाय कोराना ,कोराना हाय कोराना
सारे माॅल बे माल हो गये, पिक्चर हाल हैं खाली
दारू दुकानें बंद हो गयी, मंदिर खाली खाली
बाईयां गयी छुट्टी पर, बना गयीं हमें ही घरवाली
अब जीजा जी के फोन पर मजा ले रहीं साली
अब तक हमने नहीं पढ़ा था, चौका, बर्तन पुराण
सुबह लेकर देर रात तक, पड़ी आफत में जान
सुबह हुई तो मांज रहे हैं, थाली, लोटा, भगोना
कोराना, हाय कोराना, कोराना हाय कोराना