वो मेरी पगली है
वो मेरी पगली है
पागल सी वो लड़की है,
बहादुरी का दम भरती है,
कोहिनूर फीका है जिसके आगे,
अप्सराएँ भी पानी भरती है।
सुन्दर ह्रदय, कोमल मन से,
प्रेम अत्यंत मुझे करती है,
गलती का अह्सास दिलाती,
मुझपर गुस्सा भी करती है।
मुझको है वो पागल कहती,
पागलपन में कम नहीं है,
मुश्किलें उससे जीत जाये,
अरे उनमें इतना दम नहीं है।
भोली भाली प्यारी सी वो,
मुझे देख जब मुस्काती है,
मिट जाता है तनाव भी मित्रों,
जब वो गले लगाती है।
थोड़ी कम बोलती है वो,
ज्यादा गुनगुनाती है,
शब्द उसके कविता जैसे,
मेरी "पंक्तियां" बन जाती है।
लगाव उसका दिल से है,
ऐसी वैसी कोई बात नहीं,
उसके जैसा होना "हेमन्त",
हर किसी की औकात नहीं।

